Monday 11 July 2011

ज्योति पुंज बन पुनः जला .......

ज्योति  पुंज  बन  पुनः जला .......

बहुत अकेली थीं  राहें पर  , हमराही जब आन मिला 
बुझा हुआ आशा का दीपक ,ज्योति पुंज बन पुनः जला 

पतझड़ कि आंखों के आंसू ,पीकर नव पल्लव फूटे 
हरियाली के आगे ,  वीराने मौसम पीछे छूटे 
डाल -डाल पर महकी परिमल ,डाल -डाल पर फूल खिला 

मदमाया घन सघन गगन ,जब पावस की पाती पाई
वसुधा क्षुधा असीम भरे , लोचन से लखती ललचाई 
दूर क्षितिज पर मिलन कल्पना से मन प्रेम मगन मचला

घनश्याम वशिष्ठ    

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