बहुत अकेली थीं राहें पर , हमराही जब आन मिला
बुझा हुआ आशा का दीपक ,ज्योति पुंज बन पुनः जला
पतझड़ कि आंखों के आंसू ,पीकर नव पल्लव फूटे
हरियाली के आगे , वीराने मौसम पीछे छूटे
डाल -डाल पर महकी परिमल ,डाल -डाल पर फूल खिला
मदमाया घन सघन गगन ,जब पावस की पाती पाई
वसुधा क्षुधा असीम भरे , लोचन से लखती ललचाई
दूर क्षितिज पर मिलन कल्पना से मन प्रेम मगन मचला
घनश्याम वशिष्ठ
No comments:
Post a Comment