Friday 29 April 2011

एयर इंडिया में हड़ताल ............

एयर इंडिया में हड़ताल ...........

एयर इंडिया का भला कब होगा उद्धार, 
कर्मचारी खुद ही लगे करने बंटा ढार,.
करनें बंटा ढार  उपक्रम यह सरकारी ,
झेल रहा वर्षों से घाटे की बीमारी ,
पहले ही इस रोग का मुश्किल रहा इलाज़ ,
ऊपर से हड़ताल  यह, हुई कोढ़ पर खाज .

घनश्याम वशिष्ठ
 



Tuesday 26 April 2011

पहले राजा ,अब कलमाड़ी........

पहले राजा ,अब कलमाड़ी........

पहले राजा, अब कलमाड़ी
घोटालों के चतुर खिलाड़ी
धरी रह गयी सब चतुराई
जब पब्लिक ने वाट लगाई
साथ मीडिया भी चढ़ बोला
सत्ता का सिंहासन डौला
जब घिरने की आई बारी
गिरगिट हो गए सत्ताधारी
चुप्पी साधी मौक़ा ताड़ा
संबंधों से पल्ला झाड़ा
पलट पीठ पर लात लगाई
हवालात की राह दिखाई
मात खा गए कुटिल खेल में
सोचो दोनों बैठ जेल में

-घनश्याम वशिष्ठ


Monday 25 April 2011

आम बजट पर विशेष ........

आम बजट पर विशेष ........

बरस रही हँ खूब झमाझम
साकी ,अम्बर से हाला 
भरा लबालब छलक रहा हँ
सोने- चाँदी का प्याला 
पड़े उपेक्षित तरस रहे
बहुतेरे प्याले माटी के 
प्रश्न प्रतीक्षित  खडा शास्वत 
कब चेतेगी मधुशाला 


-घनश्याम वशिष्ठ

अंधे हालात ................

अंधे हालात ................

फूल हर सिहर उठे ,देख  दंश खार के
तार तार हो गए, शिल्प- शिल्पकार के
हाय भेंट चढ़ गए, आग के, बयार के
हो गए धुंवां- धुंवां, सप्त रंग प्यार के

घृणा कहे कटार को, घोंप दो, रे घोंप दो
वेदना कहे इसे, रोक दो, रे रोक दो
जीतती गयी घृणा
 हार संवेदना
श्रांत- शांत हो गयी, चीख के, पुकार के
हो गए धुंवां- धुंवां, सप्त रंग प्यार के

बुझ गया कहीं  दिया, आंधियां कहीं चली
मौत नाचती कहीं, दुश्मनी कहीं पली
अंग अंग कट गए
 सरहदों में बट गए
मजहबी कटार के ,सिर्फ एक वार से
हो गए धुंवां धुंवां, सप्त रंग प्यार के

राग अनुराग से, सब विराग हो गए
चहचहाते खग सभी, चील काग हो गए
नौच नौच खा रहे
 घोंसले जला रहे
मेल के, व्यवहार के, रिश्ते थे उधार के
 हो गए धुंवां धुंवां, सप्त रंग प्यार के

द्रोपदी के चीर का, हाय फिर हुआ हरण
ढूंढता कलाईयाँ, फ़िर रहा था आवरण
आस्था को छल गए
 चूड़ियों में ढल गए
लाज के हथियार थे, राखियों के तार थे
हो गए धुंवां धुंवां सप्त रंग प्यार के

पालने की सिसकियों को विराम दे कोई
नन्ही नन्ही अंगुलियाँ, बढ के थाम ले कोई
वात्सल्य खो गए
भाव शून्य हो गए
शब्द वो दुलार के, हाथ पुचकार के
 हो गए धुंवां- धुंवां, सप्त रंग प्यार के

पांव लडखडा गए, ताल से भटक गए 
सुर सुरीले टूट कर कंठ में अटक गए 
टूट कर बिखर गए
 कागजों में मर गए 
तार थे सितार के, गीत  गीतकार के
हो गए धुंवां धुंवां, सप्त रंग प्यार के


-घनश्याम वशिष्ठ  





चोर -चोर मौसेरे भाई .......

चोर -चोर मौसेरे भाई .......

डौल रही मझधार में, लोकतंत्र की नाव
जनता खेवनहार का, कैसे करे चुनाव 
कैसे करे चुनाव, खड़े जो चप्पू थामें 
उनके चरित्र, पवित्र हैं कितने, दुनियां जाने 
हाथ नहीं हालात, सोच बुद्धि चकराई 
सब के सब हैं, चोर -चोर मौसेरे भाई 

-घनश्याम वशिष्ठ 

Sunday 24 April 2011

ख़ास आदमी ......आम आदमी .......

ख़ास आदमी ......आम आदमी ...

ख़ास आदमी ....
कदम बाहर निकालो  राह से जुड़कर तो तुम देखो  
खुला अम्बर तुम्हारा है ज़रा  उड़कर तो तुम देखो 



आम आदमी ....

बंद पिंजरे के पंछी को संकूँ पिंजरे में मिलता है 
खुले अम्बर में उड़ने के अलग अपने ही खतरे है 

-घनश्याम वशिष्ठ ....
मशीनी हो गया जीवन सुबह से शाम चलता है 
न तो रस का, न भावों का, हृदय में फूल खिलता है 
यहाँ तो प्यार को भी वक़्त की हमसे शिकायत है
निभाने को तुम्हें नफरत कहाँ से वक़्त मिलता है 

घनश्याम वशिष्ठ 

Saturday 23 April 2011

नाम मिटा दो उग्रवाद फैलाते हर शैतान का

नाम मिटा दो उग्रवाद फैलाते हर शैतान का 

उग्रवाद ने घात हमारे ऊपर बारम्बार किया
प्रेम पुजारी बने रहे हमने न पलट प्रहार किया
दुस्साहस कर दुश्मन ने वारों के ऊपर वार किया
प्रश्न ऊठेगा पौरुष पर यदि अब भी ना प्रतिकार किया
शठ समझे शठता की भाषा, उठो उसे समझाने को
तत्पर लाखों राम खड़े, मत रोको धनुष उठाने दो
छोडो गीत प्रीत के मुझको गीत जंग के गाने दो
उग्रवाद जंगल है  मुझको दावानल धधकाने दो
अक्षर अक्षर आहुति को आतुर इस अभियान का
नाम मिटा दो उग्रवाद फैलाते हर शैतान का

कब तक गांधी की लाठी से पाषाणों को तोड़ेंगे
कब तक निर्मम हत्यारों को खुला देश में छोड़ेंगे
कब तक भारतवासी इस आतंकवाद को झेलेंगे
कब तक आतंकी भारत में खेल खून का खेलेंगे
कब तक बिना समर के सीमा प्रहरी जान गवाएंगे
कब तक हमले सह सह कर भी मौन साध रह जायेंगे
कब तक सिंह समाज सियारों की भाषा में बोलेगा
कब तक नहीं खून अर्जुन का सुत वधिकों पर खोलेगा
हमले पर हमले कर बैरी ने हमको ललकारा है 
प्रतिशोध लेना ही अब न्यायोचित धर्म हमारा है 
भली बुरी छोडो  जैसी भी  होगी  अब देखी जाए
संयम की सामर्थ्य कहीं कायरता ना लेखी जाए
उस विष का क्या मोल गंध ही जिसकी न भयग्रस्त करे
वही शोर्य सम्मानित होता जो शत्रु को त्रस्त करे
दुश्मन का दुर्भाग्य दिवाकर हो जैसे अवसान का

नाम मिटा दो उग्रवाद फैलाते हर शैतान का

क्या दुनिया में हमहि  बचे है वहशत का विष चखने को 
अमेरिका  किस मुख  से कहता हमको संयम रखने को 
इतना ही संयम वाला था तो क्यूँ ले हथियार उठा 
एक घाव भी ना सह पाया विषधर सा फुंफकार उठा 
भीषण बदला लेकर छोड़ा जिसने तालिबानों से 
वह अमेरिका  मांप रहा भारत को किन पैमानों से 
उजले संकल्पों पर छाया कुटिल नीति का कोहरा है  
उसका मुंह मत ताको उसका मांप दंड ही दौहरा है  
विज्ञ जनों ने सत्य कहा है  कभी गैर के कांधों  पर 
नहीं लक्ष्य संधान सफल हो स्वंम राम हो खड़े अगर
अपने घर की आग बुझेगी अपने ही पुरुषार्थ से
अटल सत्य है मुंह मत मोड़ो जुडो स्वंम के स्वार्थ से
निजी लड़ाई लड़नी पड़ती है  निज के बलबूते पर
मत ताको संयुक्त राष्ट्र को, धरो पाँव के जूते पर
नहीं चाहिए हमको कोई, नेता सकल जहान का 
नाम मिटा दो उग्रवाद फैलाते हर शैतान का


सारी दुनिया बदला लेती है, लेगी, लेती आई
नहीं कहानी नयी कोई जो अपनी सत्ता संकुचाई
अमेरिका ने बदला लेकर तालिबान को ध्वस्त किया
तटबंधों को तोड़ो इस मिथ ने जब पथ प्रशस्थ किया
सत्ताधीशो अब तो छोडो मन की दीन विवशता को
स्वंम स्वतंत्र, स्वन्मभु हो फिर  क्यूँ ढोते परवशता को
दुश्मन ना वश में आयेगा मृदुल, मधुर मनुहारों से
लातों का है भूत इसे तुम, रोंदो पद प्रहारों से
अब प्रतिकार प्रहार प्रश्न बन गया मान सम्मान का
नाम मिटा दो उग्रवाद फैलाते हर शैतान का

-घनश्याम वशिष्ठ





Friday 22 April 2011

आये चुनाव .......आये नेता .......

आये चुनाव .......आये नेता .......  


हैं हकीकत में या दिखे ख्यालों में 
आये हुज़ूर पांच सालों में .

आये जनता के द्वार आये हैं
शर्म सर से उतार आये हैं 
करने झूठा प्रचार आये हैं 
देखो, रंगे सियार आये  हैं

निकलो घर से, बुहारो रास्तों को
लाओ स्वागत के हार, थालों में 

यूँ ना तानों के बाण बरसाओ
ना शिकायत करो, ना गरियाओ
खाओ इन पर तनिक तरस खाओ 
खींच कर कटघरे में मत लाओ

घिरे रहे हैं जो पहले से ही आरोपों में
उनको घेरो न तुम सवालों में

हुआ क्यूँ  ना विकास, मत पूछो
उठी वादों की लाश, मत पूछो
आये क्यूँ ना ये पास, मत पूछो
क्या रहे काम ख़ास, मत पूछो

सांस लेने की भी ना फुर्सत  थी
व्यस्त थे, घपलों में, घोटालों में.


हैं हकीकत में या दिखे ख्यालों में 
आये हुज़ूर पांच सालों में

 .

-घनश्याम वशिष्ठ
 










chhapa poster

 छपा पोस्टर ....फलां नेता ने मेट्रो प्रोजेक्ट पास कराया .......


विकास के मद में जो कुछ भी आता है 
सब नेताओं के खाते में जाता है 
कैश भी 
क्रेडिट भी 

घनश्याम वशिष्ठ




Thursday 21 April 2011

पर्यावरण पर विशेष.......

झेली है जापान ने अभी कुदरती मार 
फिर भी धरती के प्रति चेता ना संसार 
चेता  ना संसार अभी जारी  है दोहन 
पर्यावरण का गड़बड़ सब कर रहा संतुलन
सृष्टि की रक्षा निमित,रही है दुनिया रॉय 
बोया पेड़ बबूल का,आम कहाँ  से होय 

   -घनश्याम वशिष्ठ