रात हिंद के अम्बर पर कैसी काली अंधियारी है
भय भी हो भयभीत भयानक वक़्त अभी कुछ भारी है
सब कुछ उजला दिखता है, आभा भी अचरजकारी है
उजले कपडे पहन बगल में , बैठा अत्याचारी है
तन से मन से कण कण से धन लोलुप भ्रष्टाचारी है
आज उसी के हाथों में कोरी तकदीर हमारी है
मातृभूमि से नेह नहीं है सत्ता जिसको प्यारी है
मीठी बातों में जिसकी उलझी यह जनता सारी है
धरती का सौदा करने को , आतुर यह व्यापारी है
और विडम्बना यह कि इस पर मुहर लगी सरकारी है
स्वंय स्वम्भू होकर जननी बेबस है बेचारी है
अबला की असहाय की यह किसने तस्वीर उतारी है
सूनी सूनी आँखों में हैं वही पुरानी जंजीरें
देखो लोगो देखो रे आज़ाद हिंद की तस्वीरें
गुंडों नें बदमाशों नें ली मनमानी की थाम लगाम
ज़ालिम थे कुख्यात मगर क्या हद है ये हो गए सुनाम
नहीं सुरक्षा घर के अन्दर नहीं गली चौराहे पर
चारों और दिखाई देती दहशत खडी उठाये सर
पौरुष पर हावी कायरता देखी इसी ज़माने में
शीश उठाने से बेहतर हित समझा शीश झुकाने में
खुशियाँ घर से बाहर निकलकर आ बैठी मयखाने में
लोगों का ईमान यहाँ अब बिकता है दो आने में
अबला की लज्जा का आँचल हठ से खींच गया कोई
किसी अँधेरे कोने में जा दुबकी पौरुषता सोई
जलकर खाक हुआ तन अब भी आँखें हैं रोई -रोई
किसनें खींची तस्वीरें यह बुझी - बुझी खोई -खोई
व्याभिचार की हाट लगाईं किसनें गंगा के तीरे
देखो लोगो देखो रे आज़ाद हिंद की तस्वीरें