Wednesday 31 August 2011

प्रीत की दीवानगी में....

प्रीत की दीवानगी में....
वो यूँ ही अचानक मेरे जीवन में आ गए
बेरंग   नज़ारे थे  जो,  वो  रंग   पा गए 
थे मातमी माहौल में , गाना था मर्सिया 
हम प्रीत की दीवानगी में फाग गा गए 

घनश्याम वशिष्ठ

Tuesday 30 August 2011

दे न पाए जो मोहब्बत का सिला 
थे कहीं मजबूर उनसे क्या गिला 

घनश्याम वशिष्ठ 

Monday 29 August 2011

कांटे चुभे, फिर भी ना संभला 
फूलों का भूखा दिल ये पगला 

घनश्याम वशिष्ठ 

Saturday 27 August 2011

अन्ना की अगुआई में 
संघर्ष किया  हम जीत गए
धुनते है सर अपना वो 
जो जनमत के विपरीत गए

घनश्याम वशिष्ठ


Friday 26 August 2011

उछल  रहे हैं  खूब प्यादे 
मनमोहन हैं चुप्पी साधे 

घनश्याम वशिष्ठ 
हमारा ध्येय है भ्रष्टाचार मिटायें 
फिर.... सरकार जाए ...तो जाए

घनश्याम वशिष्ठ

 लोग आशा कर रहे थे कि आज तो संसद कोई सकारात्मक निर्णय लेकर ही उठेगी ,
 चाहे कितना भी समय क्यों न लगे क्योंकि एक एक मिनट अन्ना जी के जीवन को
 खतरे की ओर ले जा रहा है लेकिन हद है संवेदनहीनता की संसद बिना अन्ना जी
 के जीवन की चिंता किये उठ गयी .
क्या कोई अपनों के  साथ ऐसा कर सकता है ?
कैसे कहें हमारे सांसद हमारे अपने है ?
लोग  पराये  राज करें , यह  हमको  मंजूर  नहीं
चुप रहकर अन्याय सहें, इतने भी मजबूर नहीं

घनश्याम वशिष्ठ

Thursday 25 August 2011

मैं देश का अपराधी हूँ कि मैंने ऐसा सांसद चुना 
मैं स्वीकार करता हूँ ,आप भी स्वीकार करें .
 भूल सुधार करें.
वर्तमान सांसदों को हटाओ ,भ्रष्टाचार मिटाओ ,
देश बचाओ ,आओ अन्ना के साथ आओ

घनश्याम वशिष्ठ

Wednesday 24 August 2011

बच्चे ने सुना भ्रष्टाचार मिटाना है , रबर लिया मिटा दिया 
उसने तो अपनी सामर्थ्य अनुसार कर दिया
आपने भी अपनी सामर्थ्य अनुसार करना है
वरना कल वही कहेगा ,हमारी पहली पीढी कितनी असमर्थ थी

घनश्याम वशिष्ठ 
अकडू सांसद अपनी दुर्गत होती देखकर भूमिगत हो गए 
अब तो आका भी कहते है ,बाहर निकले तो निकाल बाहर करेंगे 
घनश्याम वशिष्ठ

Tuesday 23 August 2011

लोकतंत्र में  जन  सैलाब को बलात रोकना ,राजनैतिक आत्म हत्या करना है .
भला कौन समझाए इन घमंड में बौराए राजनेताओं को ?
विनाश काले विपरीत बुद्धी .

घनश्याम वशिष्ठ



सुनकर जनता की ललकार 
बिल में  जा  दुबकी सरकार 
 घनश्याम वशिष्ठ
 

Monday 22 August 2011

आग लगने पर उन्हीं के झोंपड़े
 भक- भक कर जल गए
जिनके यहाँ
मुश्किल से चुल्हा जलता था 

घनश्याम वशिष्ठ


Sunday 21 August 2011

ज़ालिम सत्ता, जनता के फौलाद भरा सीनों में 
तनकर खड़े देखने कितना लावा है संगीनों में

घनश्याम वशिष्ठ
अनशनकारी लठ के आगे 
भ्रष्टाचारी  भूत नाचता
कौन नचाये 
ता-धिक्-तन्ना 
केवल  अन्ना 
घनश्याम वशिष्ठ

Saturday 20 August 2011

 हर जननी यह कहे  कोख से ,
अन्य न कोई  जातक जनना 
गर है जनना, तो तुम  जनना
केवल अन्ना

घनश्याम वशिष्ठ

Friday 19 August 2011

पापा बोले, 
बेटा चाहे कुछ मत बनना
गर बनना चाहो,
कुछ बनना , 
तो  तुम  बनना
केवल अन्ना 

घनश्याम  वशिष्ठ

नहीं कमज़ोर पावों को 
ज़मीं   स्थान   देती  है 
सदा मज़बूत पावों  को
ज़मीं खुद  थाम लेती है 

घनश्याम वशिष्ठ 

Thursday 18 August 2011

कहे  यह  हौसला  तुमसे ,
अभी तुममें तो, मैं हूँ ना 
न तानो  शामियानों को ,
अभी  अम्बर को है छूना 

घनश्याम वशिष्ठ

Wednesday 17 August 2011

निरंकुश सरकार की लगाम, एक जुट जनता के सशक्त हाथों में होती है ..
जनता को यह सच्चाई जाननी चाहिए 

लोकतंत्र है खुद को जानो प्रथम हो तुम मतदाता हो
सत्ताधारी  कृति  तुम्हारी  ,तुम  सत्ता   निर्माता  हो

घनश्याम वशिष्ठ

Tuesday 16 August 2011

सत्ता के मद में डूबी सरकार वक़्त रहते संभल जाए तो अच्छा है ,
वरना जनता के हाथो डूबी तो उबर नहीं पाएगी 

अरबों हाथ 
अन्ना  के साथ 

घनश्याम वशिष्ठ 












































































































































































































































































































































































































































































































































































































































































































saath  




















































































































































































































































































































































































































































































































































































































































































































































































































































































































































































































































































































Monday 15 August 2011

आज़ाद देश  में ,दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में.
भ्रष्टाचार से मुक्ति पाने के लिए ,आज संघर्ष करने की 
आज़ादी नहीं .....क्या कहेंगे लोकतंत्र और आज़ादी
के बारे में?

घनश्याम वशिष्ठ

अन्ना के अनशन के लिए जगह नहीं...........
सांसदों और मंत्रियों के खाने के लिए,
पूरा देश 

 जनता  के भूखा रहने के लिए भी 
कोई जगह नहीं

घनश्याम वशिष्ठ 













































































Sunday 14 August 2011

लाज गंवाई हारकर,और  गंवाया  ताज 
देखें क्रिकेट बोर्ड की , कहाँ गिरेगी गाज

घनश्याम वशिष्ठ 

देखो लोगो देखो रे ...........

देख-देख कर सुबक रहीं हैं लालकिले की प्राचीरें
देखो लोगो  देखो रे   आज़ाद   हिंद  की  तस्वीरें 

वही  मोहल्ला  वही  मकां  है वही आज गलियारे हैं 
वही  है  सूरज  वही  चाँद  है वही  चमकते  तारें  हैं
महिमा मंडित वही हिमालय नूर ए चश्म नज़ारे हैं
पावन नदियों के कल-कल बहते निर्मल जल धारे हैं
माटी  की  सौंधी  खुशबु  के  नटखट  ख्वाब कुंवारे हैं
चूड़ी  की  खन-खन  पनघट पर पायल की झंकारें हैं
सब  कुछ  वैसा  ही  है  दिल  के बदले भाव हमारे है
जाति-धर्म  के  नाम  पे  बंट गए हम सारे के सारे हैं
हिन्दू -मुस्लिम  भाई  भाई  के  क्यूँ  मिटते  नारे  है
और   घृणा   से   विकृत   होते   जाते  भाई  चारे  है
निर्मल मन की आभा पर हावी क्यूँकर अंधियारे हैं
बैर  भाव   से  सने  हुए   किसने  ये  चित्र  उतारे  हैं
भाई की भाई के ऊपर  तानी हुई हैं शमशीरें
देखो लोगो  देखो रे  आज़ाद हिंद की तस्वीरें

रात  हिंद  के  अम्बर   पर   कैसी     काली   अंधियारी  है 
भय  भी  हो  भयभीत  भयानक  वक़्त अभी कुछ भारी है  
सब  कुछ उजला  दिखता  है, आभा  भी अचरजकारी    है 
उजले   कपडे   पहन   बगल   में ,  बैठा   अत्याचारी   है 
 तन से मन  से कण  कण से धन  लोलुप  भ्रष्टाचारी   है 
आज     उसी    के   हाथों  में  कोरी  तकदीर   हमारी   है
 मातृभूमि   से नेह   नहीं   है सत्ता   जिसको   प्यारी   है 
मीठी   बातों  में  जिसकी  उलझी  यह जनता   सारी  है
  धरती  का  सौदा  करने  को , आतुर  यह  व्यापारी  है
 और विडम्बना यह कि इस पर मुहर लगी  सरकारी  है
स्वंय   स्वम्भू    होकर   जननी      बेबस    है बेचारी है 
 अबला  की  असहाय की यह किसने तस्वीर उतारी है
 सूनी सूनी आँखों में हैं वही पुरानी जंजीरें 
 देखो लोगो देखो रे आज़ाद हिंद की तस्वीरें 

 गुंडों  नें  बदमाशों  नें  ली  मनमानी  की  थाम  लगाम 
 ज़ालिम थे कुख्यात मगर क्या हद है ये हो गए सुनाम 
  नहीं  सुरक्षा  घर  के  अन्दर   नहीं  गली  चौराहे  पर
  चारों  और  दिखाई  देती   दहशत  खडी  उठाये   सर 
 पौरुष   पर   हावी   कायरता   देखी  इसी  ज़माने   में
 शीश  उठाने से  बेहतर  हित  समझा  शीश झुकाने में
 खुशियाँ घर से बाहर निकलकर  आ बैठी  मयखाने में
 लोगों  का  ईमान  यहाँ  अब  बिकता  है  दो  आने  में
 अबला  की लज्जा का आँचल  हठ से खींच  गया कोई 
 किसी   अँधेरे   कोने   में   जा   दुबकी  पौरुषता  सोई 
जलकर  खाक  हुआ  तन अब  भी  आँखें हैं  रोई -रोई
किसनें  खींची  तस्वीरें  यह  बुझी - बुझी  खोई  -खोई
 व्याभिचार की हाट लगाईं किसनें गंगा के तीरे
देखो लोगो  देखो  रे  आज़ाद  हिंद  की  तस्वीरें

घनश्याम वशिष्ठ   



























































































































































































































































































































































































































































































































































































































































































































































































































































































































































































































































































































































































































































































































































































देखो लोगो देखो रे आज़ाद  हिंद की तस्वीरें 

वही मोहल्ला वही मकां है वही आज गलियारे हैं 
वही है सूरज वही चाँद है वही चमकते तारें हैं
महिमा मंडित वही हिमालय नूर ए चश्म नज़ारे हैं
पावन नदियों के कल-कल बहते निर्मल जल धारे हैं
माटी की सौंधी खुशबु के नटखट ख्वाब कुंवारे हैं
चूड़ी की खन-खन पनघट पर पायल की झंकारें हैं
सब कुछ वैसा ही है दिल के बदले भाव हमारे है
जाति-धर्म के नाम पे बंट गए हम सारे के सारे हैं
हिन्दू मुस्लिम भाई भाई के क्यूँ मिटते नारे है
और घृणा से विकृत होते जाते भाई चारे है
निर्मल मन की आभा पर हावी क्यूँकर अंधियारे हैं
बैर भाव   से सने हुए किसने ये चित्र उतारे हैं
भाई की भाई के ऊपर तानी हुई हैं शमशीरें
देखो लोगो देखो रे आज़ाद हिंद की तस्वीरें