कादम्बिनी के प्रवेश स्तम्भ में प्रकाशित
मेरी चार कविताएं .....(एक )
चिंता ...
मेरे अंतर में ,
एक कीटाणु पल रहा है .
जो , मेरा खून चूसता है.
कुछ समय बाद ही ,
एक फ़ौज बन गया,
निरंतर बढती हुई ,
जो हर पल बढती जा रही है
और .....
बढती जाएगी
अतीत / वर्तमान / भविष्य
लांघती , क्रमानुसार
मेरे बढ़ने के साथ -साथ
सोचता हूँ ..
मेरा बढना ही क्यों न रुक गया
जो ये ,
कीटाणु तो न पनपते
घनश्याम वशिष्ठ
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