Friday 7 August 2015

                     दस
होता उल्ल्लासित उर  हो  जब
कर में सत्ता का प्याला
उठे गर्व से भाल  कीर्ति -
गान करें साकी बाला
नहीं सुनाई देते तब स्वर
बेबस आँखों वालों के
तभी गर्व की मादकता से
गहरा जाती मधुशाला
घनश्याम वशिष्ठ

Thursday 6 August 2015

मत करो पडोसी को तिल्ली दिखने की गलती
 बेवकूफो , हवाएँ तुम्हारे हुक्म से नहीं चलती
घनश्याम वशिष्ठ

Wednesday 5 August 2015

जिनके नाक में नकेल चाहिए थी
अफ़सोस , उन्हें लगाम थमा दी
घनश्याम वशिष्ठ
अब तो मन की बात यही है
साइलेंट मोड ही सही है
घनश्याम वशिष्ठ 

Monday 3 August 2015

                    नौ
सुन नारों के स्वर मधु घट से
गिरती प्यालों में हाला
जय जय जय का बिगुल बजाती
घूम रहीं साकी बाला
बस अब पलभर की देरी है
कुछ शतरंजी कदम बढ़ा
विजयश्री तोरण पर,आतुर-
तिलक लगाने मधुशाला
घनश्याम वशिष्ठ 

Saturday 1 August 2015

                     आठ
सत्ता पाने की अभिलाषा
हो उत्कट बनकर हाला
सिंहासन सुस्पर्श आभासित
हो ज्यों मदिरा का प्याला
बने ध्यान ही करते करते
जुगत सफल सत्ता सुख की
यही सफलता अधिकारों की
दिलवा देगी मधुशाला
घनश्याम वशिष्ठ


Tuesday 28 July 2015

              सात
सोच चले जा मिथ्या की जय
बोल सत्य का मुँह काला
आचरणों में ढोंग ओढ़कर
बन कोमल साकी बाला
झूठा नेह दिखाकर भर ले
प्याला अपना जनमत से
व्यवसायी बन कुटिल न तुझको
दूर लगेगी मधुशाला
घनश्याम वशिष्ठ