Tuesday 28 July 2015

              सात
सोच चले जा मिथ्या की जय
बोल सत्य का मुँह काला
आचरणों में ढोंग ओढ़कर
बन कोमल साकी बाला
झूठा नेह दिखाकर भर ले
प्याला अपना जनमत से
व्यवसायी बन कुटिल न तुझको
दूर लगेगी मधुशाला
घनश्याम वशिष्ठ 

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