चिता से वीर शहीदों की रज अंजली भरकर लाया हूँ
नहीं जिन्होनें खून का कतरा एक देश के नाम किया
नहीं जिन्होनें गर्व करे माटी कुछ ऐसा काम किया
नहीं जिन्होंने आज़ादी यह संघर्षों से पायी हँ
नहीं जिन्होनें सरहद पर दुश्मन की गोली खाई हँ
नहीं जिन्होनें घाव की पीढा वीरों जैसी झेली हँ
नहीं जिन्होनें खूनी होली दीवानों सी खेली हँ
नहीं जिन्होनें अपना कोई लाल ज्वाल में झौंका हँ
नहीं जिन्होनें तूफानों को बढ़ सीनों पर रोका हँ
और वही जो खुद की रक्षा खुद ही ना कर पातें हँ
जैड सुरक्षा के घेरे में रहते जान बचातें हँ
भाषण के ये मेघ भला तोपों की गर्जन क्या जानें
वैभव के चमकीले नभ शोलों की भडकन क्या जानें
इन वीरों को तोपों के दर्शन करवाकर तो देखो
कभी बलात समर भूमीं में इनको लाकर तो देखो
मारे भय के रक्तिम मुखमंडल पीले हो जायेंगे
तने हुए भ्रकुटी तंतु पल में ढीले हो जायेंगे
फिर भी आखिर वीरोचित सम्मान यही पा जातें हँ
कायर लोगों की खातिर हम क्यूँ विरुदावली गातें हँ
कायर ऐसे लोग कहो क्यूँ देश भक्त कहलातें हँ
सच्चे वीर हिंद के यादों में धुंधलाते जातें हँ
देश प्रेम की परिमल से परिचय करवाने आया हूँ
चिता से वीर शहीदों की रज अंजलि भर कर लाया हूँ
इस रज़ में हँ रची बसी परिमल बारूदी गोली की
याद उकेरे मानस पट पर समर पर्व की होली की
यह पावन परिमल क्रान्ति की बहती अविरल धारा हँ
आज़ादी का हर आन्दोलन इसमें डूबा सारा हँ
यह परिमल महकी थी फांसी के फंदे की सांसों में
भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु के पावन प्रयासों में
बिस्मिल, लाहिड़ी, ऊधमसिंह इस परिमल के अणु रूप हुए
घन आच्छादित आज़ादी की खातिर निर्मल धूप हुए
नेताजी, आज़ाद सरीखे हर जीवट जांबाजों से
यह परिमल बन पवन बही थी जयहिन्द की आवाजों में
रानी झांसी समर भूमिं में खेल शौर्य का जो खेली
उसकी रक्त सुवास बहिन बनकर इस परिमल ने ले ली
महाराणा ने वीर शिवाजी ने जो था संघर्ष किया
उसी शौर्य ने इस परिमल को विस्तृत नभ उत्कर्ष दिया
सीमाओं से चली हवा भरकर परिमल बलिदानों की
जगा गयी हिय में भूली सी यादें वीर जवानों की
देश प्रेम के पावन पथ पर जिसने रुधिर बहाया हँ
उसनें तन की रज़-रज़ से इस परिमल को महकाया हँ
साँस साँस में भर लो सांसों को महकाने आया हूँ
चिता से वीर शहीदों की रज अंजलि भर कर लाया हूँ
उर में ज्वाल उठा हँ भारी भाव हुयें हँ दग्ध मेरे
देश वासियों निमित तुम्हारे संप्रेषित हँ शब्द मेरे
हम जयघोष करें उनकी जो लिप्त रहे घोटालों में
राजनीति के दुष्चक्रों में, कुत्सित चाल- कुचालों में
व्यथा यही हँ उलटी गंगा बहती हँ सम्मानों की
नहीं चिताओं पर मेले जब लगते वीर जवानों की
तब आहत अन्तर होता हँ खून खौलनें लगता हँ
मूढ़ व्यवस्था पर कडवे शब्द कवि बोलनें लगता हँ
नहीं सूखनें देना हँ यदि देश प्रेम की धारा को
हो जाओ आज़ाद तोड़कर दुर्बल मन की कारा को
लोकतंत्र हँ खुद को जानों प्रथम हो तुम मतदाता हो
सत्ता धारी कृति तुम्हारी तुम सत्ता निर्माता हो
उन्हें हटाओ देशद्रोह में लिप्त जिन्हें भी पाया हँ
पांच साल का कोई पट्टा नहीं लिखा कर आया हँ
नेताओं को छोडो पहले वीरों का सम्मान करो
इनका ही जयघोष करो इनका ही गौरवगान करो
सागर मंथन से निकले यह अमृत कलश हमारें हँ
शौर्य अगर ज़िंदा हँ तो ज़िंदा रहतीं सरकारें हँ
जागो -जागो देशवासियों तुम्हें जगानें आया हूँ
चिता से वीर शहीदों की रज अंजलि भर कर लाया हूँ
-घनश्याम वशिष्ठ