Monday 16 May 2011

चिता से वीर शहीदों की रज अंजली भरकर लाया हूँ

चिता से वीर शहीदों की रज  अंजली भरकर लाया हूँ 

नहीं जिन्होनें खून का कतरा एक देश के नाम किया 
नहीं जिन्होनें गर्व करे माटी कुछ ऐसा काम किया 
नहीं जिन्होंने आज़ादी यह संघर्षों से पायी हँ
नहीं जिन्होनें सरहद पर दुश्मन की गोली खाई हँ 
नहीं जिन्होनें घाव की पीढा वीरों जैसी झेली हँ 
नहीं जिन्होनें खूनी होली दीवानों सी खेली हँ 
नहीं जिन्होनें अपना कोई लाल ज्वाल में झौंका हँ 
नहीं जिन्होनें तूफानों को बढ़ सीनों पर रोका हँ 
और वही जो खुद की रक्षा खुद ही ना कर पातें हँ 
जैड सुरक्षा के घेरे में रहते जान बचातें हँ 
भाषण के ये मेघ भला तोपों की गर्जन क्या जानें 
वैभव के चमकीले नभ शोलों की भडकन क्या जानें 
इन वीरों को तोपों के दर्शन करवाकर तो देखो 
कभी बलात समर भूमीं में इनको लाकर तो देखो 
मारे भय के रक्तिम मुखमंडल पीले हो जायेंगे 
तने हुए भ्रकुटी तंतु पल में ढीले हो जायेंगे 
फिर भी आखिर वीरोचित सम्मान यही पा जातें हँ 
कायर लोगों की खातिर हम क्यूँ विरुदावली गातें हँ 
कायर ऐसे लोग कहो क्यूँ देश भक्त कहलातें हँ 
सच्चे वीर हिंद के यादों में धुंधलाते जातें हँ 
देश प्रेम की परिमल से परिचय करवाने आया हूँ 
चिता से वीर शहीदों की रज अंजलि भर कर लाया हूँ

इस रज़ में हँ रची बसी परिमल बारूदी गोली की 
याद उकेरे मानस पट पर समर पर्व की होली की 
यह पावन परिमल क्रान्ति की बहती अविरल धारा हँ 
आज़ादी का हर आन्दोलन इसमें डूबा सारा हँ   
यह परिमल महकी थी फांसी  के फंदे की सांसों में 
भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु के पावन प्रयासों में 
बिस्मिल, लाहिड़ी, ऊधमसिंह इस परिमल के अणु रूप हुए 
घन आच्छादित आज़ादी की खातिर निर्मल धूप हुए 
नेताजी, आज़ाद सरीखे हर जीवट जांबाजों से 
यह परिमल बन पवन बही  थी जयहिन्द की आवाजों में 
रानी झांसी समर भूमिं में खेल  शौर्य का जो खेली 
उसकी रक्त सुवास बहिन बनकर इस परिमल ने ले ली 
महाराणा ने वीर शिवाजी ने जो था संघर्ष किया 
उसी शौर्य ने इस परिमल को विस्तृत नभ उत्कर्ष दिया  
सीमाओं से चली हवा भरकर परिमल बलिदानों की 
जगा गयी हिय में भूली सी यादें वीर जवानों की 
देश प्रेम के पावन पथ पर जिसने रुधिर बहाया हँ 
उसनें तन की रज़-रज़ से इस परिमल को महकाया हँ 
साँस साँस में भर लो सांसों को महकाने आया हूँ 
चिता से वीर शहीदों की रज अंजलि भर कर लाया हूँ

उर में ज्वाल उठा हँ भारी भाव हुयें हँ दग्ध मेरे 
देश वासियों निमित तुम्हारे संप्रेषित हँ शब्द मेरे 
हम जयघोष करें उनकी जो लिप्त रहे घोटालों में 
राजनीति के दुष्चक्रों में, कुत्सित चाल- कुचालों में 
व्यथा यही हँ उलटी गंगा बहती हँ सम्मानों की 
नहीं चिताओं पर मेले जब लगते वीर जवानों की 
तब आहत अन्तर होता हँ खून खौलनें लगता हँ 
मूढ़ व्यवस्था पर कडवे शब्द कवि बोलनें लगता हँ 
नहीं सूखनें देना हँ यदि देश प्रेम की धारा को 
हो जाओ आज़ाद तोड़कर दुर्बल मन की कारा को 
लोकतंत्र हँ खुद को जानों प्रथम हो तुम मतदाता हो 
सत्ता धारी कृति तुम्हारी तुम सत्ता निर्माता हो 
उन्हें हटाओ देशद्रोह में लिप्त जिन्हें भी पाया हँ 
पांच साल का कोई पट्टा नहीं लिखा कर आया हँ 
नेताओं को छोडो पहले वीरों का सम्मान करो 
इनका ही जयघोष करो इनका ही गौरवगान करो 
सागर मंथन से निकले यह अमृत कलश हमारें हँ 
शौर्य अगर ज़िंदा हँ तो ज़िंदा रहतीं सरकारें हँ 
जागो -जागो देशवासियों तुम्हें जगानें आया हूँ 
चिता से वीर शहीदों की रज अंजलि भर कर लाया हूँ 

-घनश्याम वशिष्ठ 


















































































































































































































































































































































































































































































































































































































































































































































































































































































































































































































































































































































































































































































































































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