Tuesday 17 May 2011

दे नजारों को नज़र वो मन गया

दे नजारों को नज़र वो मन गया 

दे नजारों को नज़र वो मन गया 
खूबसूरत अक्स का दर्पण गया 

दोष देती माँ, कसाई पेट को -
पालनें में, लाल का बचपन गया 

जल उठे  चूल्हा. फक़त इस आग में 
मास भर की आस का वेतन गया

संग हैं अब सलवटें ही सेज पर 
फाइलों की मेज़ पर यौवन गया 

यह भी अपना वह  भी अपना हो सके 
बस, इसी चाहत में अपनापन गया 

-घनश्याम वशिष्ठ 




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