सोच चले जा मिथ्या की जय
बोल सत्य का मुंह काला
आचरणों में ढोंग ओढ़कर
बन कोमल साकी बाला
नेह दिखाकर जैसे भी हो
भर ले प्याला जनमत का
बन जा कुटिल कुशल न तुझको
दूर लगेगी मधुशाला
घनश्याम वशिष्ठ
बोल सत्य का मुंह काला
आचरणों में ढोंग ओढ़कर
बन कोमल साकी बाला
नेह दिखाकर जैसे भी हो
भर ले प्याला जनमत का
बन जा कुटिल कुशल न तुझको
दूर लगेगी मधुशाला
घनश्याम वशिष्ठ