Wednesday 31 July 2013

गरीबी तो ज़मीन पर थी ,
उन्होंने ज़मीन के  नीचे रेखा  खींच दी। 
घनश्याम वशिष्ठ

Tuesday 30 July 2013

बात  समझ से परे है ,
नदियाँ सूखी हैं ,नाले लबालब भरे हैं 
घनश्याम वशिष्ठ

Sunday 21 July 2013

सचमुच भूख का शहर ,
नहीं देखता, जूठन है या ज़हर ,
घनश्याम वशिष्ठ

Tuesday 16 July 2013

चुनावी दस्तक ...........
कैसा उत्सव है ,पंडाल सज रहे हैं .
खाली बर्तन बज रहे हैं .
घनश्याम वशिष्ठ