देख लो ,हम कितने रिश्ते निभाते हैं हम चले तो आप, आप चले तो हम रोक नहीं पाते हैं। घनश्याम वशिष्ठ
Friday 27 June 2014
कुछ यूँ हुए सपनों के बटवारे सच्चे सच्चे उनके झूठे हमारे घनश्याम वशिष्ठ
Thursday 26 June 2014
नूतन हाला की तृष्णा में तोड विगत कर का प्याला साकी के नयनो से मादक स्वप्न देखता मतवाला दीख रही है नई नवेली नित नूतन श्रृंगार किए अभी लगे है कंचन काया काढ़े घूँघट मधुशाला घनश्याम वशिष्ठ
Wednesday 25 June 2014
दिख ही जाते हैं अक्सर फुटपाथी ढाबों पर , झूठे बर्तन ,अतिक्रमण करते किताबों पर . घनश्याम वशिष्ठ
Tuesday 24 June 2014
महँगाई की मारी ज़रूरतें ,छोटी हुई जा रही हैं . दिन ब दिन पापड़ सी , रोटी हुई जा रही हैं घनश्याम वशिष्ठ
Monday 23 June 2014
पनवाड़ी की दुकान पर हवा ,आज फिर ठहरी खड़ी है
किधर का रुख करे , बेचारी …असमंजस में पड़ी है
घनश्याम वशिष्ठ
Friday 20 June 2014
उम्मीदों की अम्मा ,कब तक खैर मनाएगी . मैनिफेस्टो की इमारत फर -फर उड़ जायेगी , घनश्याम वशिष्ठ
Monday 16 June 2014
सब्ज़ बाग़ दिखाते रहो ,बियबान में , अन्धे बहुत आते हैं दुकान में। घनश्याम वशिष्ठ
Friday 13 June 2014
इधर तकलीफ बढ़ीं आँखों में सावन घिर गया उधर ,उम्मीदों की आँखों का पानी गिर गया घनश्याम वशिष्ठ
Thursday 5 June 2014
वक़्त (दिन ) की भला कौन जाने , अच्छे लोग आएं ……तो मानें . घनश्याम वशिष्ठ
Tuesday 3 June 2014
पंजों में ताक़त ही नहीं थी वजन ढोने की , तो क्या ज़रुरत थी उचककर ऊंचा होने की घनश्याम वशिष्ठ