Saturday 28 June 2014

देख लो ,हम कितने रिश्ते  निभाते हैं 
हम चले तो आप, आप चले तो हम
रोक  नहीं पाते हैं। 
घनश्याम वशिष्ठ 

Friday 27 June 2014

कुछ यूँ हुए सपनों के बटवारे 
सच्चे सच्चे उनके झूठे हमारे 
घनश्याम वशिष्ठ 

Thursday 26 June 2014

नूतन हाला की तृष्णा में तोड विगत कर का प्याला
साकी के नयनो से मादक स्वप्न देखता मतवाला  
दीख रही है नई नवेली नित नूतन श्रृंगार किए 
अभी लगे है कंचन काया काढ़े  घूँघट मधुशाला 
घनश्याम वशिष्ठ 



Wednesday 25 June 2014

दिख ही जाते हैं अक्सर फुटपाथी ढाबों पर ,
झूठे बर्तन ,अतिक्रमण करते किताबों पर  . 
घनश्याम वशिष्ठ 

Tuesday 24 June 2014

महँगाई की मारी ज़रूरतें ,छोटी हुई जा रही हैं  . 
दिन ब  दिन  पापड़ सी , रोटी  हुई जा  रही हैं 
घनश्याम वशिष्ठ 

Monday 23 June 2014

पनवाड़ी की दुकान पर हवा ,आज फिर ठहरी खड़ी है 
किधर का रुख करे , बेचारी  …असमंजस  में पड़ी है 
घनश्याम वशिष्ठ 

Friday 20 June 2014


उम्मीदों की अम्मा  ,कब तक खैर मनाएगी  . 
मैनिफेस्टो की इमारत फर -फर  उड़ जायेगी ,
घनश्याम वशिष्ठ

Monday 16 June 2014

सब्ज़ बाग़ दिखाते रहो ,बियबान  में ,
अन्धे बहुत आते हैं दुकान में। 
घनश्याम वशिष्ठ 

Friday 13 June 2014

इधर तकलीफ बढ़ीं आँखों में सावन घिर गया 
 उधर ,उम्मीदों  की आँखों का पानी  गिर गया
घनश्याम वशिष्ठ

Thursday 5 June 2014

वक़्त (दिन ) की भला कौन जाने ,
अच्छे लोग आएं   ……तो मानें . 
घनश्याम वशिष्ठ

Tuesday 3 June 2014

पंजों में ताक़त  ही  नहीं थी वजन ढोने की  ,
तो  क्या ज़रुरत थी उचककर ऊंचा  होने की
 घनश्याम वशिष्ठ