कल हथेली पर सुखद सपनें बुने
कल हथेली पर सुखद सपनें बुने
हो गये गम के वही बादल घने
जबकि हम पर थीं बहारें मेहरबाँ
जो चुने, हर फूल कागज़ के चुने
जिनसे थी उम्मीद हर इमदाद की
चल दिए वह ही थमाकर झुनझुनें
यार, तुंमसे क्या करें शिकवा गिला
कुछ रहे ना जब वफ़ा के मायने
साथ जब चलती नहीं परछाईयाँ
साथ क्या देंगे भला फिर आईने
मौत पर मातम मनाने को मेरी
गम अकेलापन ही आये दो जने
-घनश्याम वशिष्ठ
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