Wednesday, 22 July 2015

              तीन 
आँख मूंदकर लाज बेचकर
लेकर आया हूँ हाला
फर्क नहीँ पड़ता मुझको कि 
चिलम भरूँ या कि प्याला 
हुक्म हुजुरी  कर कर के निज 
अहम कभी का बेच चुका 
आज हृदय के भाव बेचकर 
करूँ समर्पण मधुशाला 
घनश्याम वशिष्ठ 

No comments:

Post a Comment