Thursday, 23 July 2015

           चार
सत्ता तो मदमय हाला है
कितनों का प्यासा प्याला
अपने प्याले में हाला की
सोचे हर पीने वाला
साम दाम भय दंड भेद से
जैसे भी हो मिल जाये
सत्ता के ठेकों की हाला
अधिकारों की मधुशाला
घनश्याम वशिष्ठ 

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