अचरज में है बादल ........
कहाँ से चुराया बतलाओ तो,
आँखों का ये काजल
अचरज में है बादल
रसवंती ना रस छलकाओ
मधुशाला ना होश उडाओ
छल -छल छलके है मधुघट से
यौवन का मदिरा जल
होता मदिर मन पल -पल
नज़रों के ना तीर चलाओ
ठहरी पलकें तनिक गिराओ
वरना हम गश खा जायेंगे
खोकर चेतन निश्चल
पग छोड़े अचला तल
चिहुक-चिहुक ऐसे मत बोलो
अधर युगल देखो मत खोलो
सुर सागर में बह जाएगा
यह चंचल कोलाहल
मच जायेगी हलचल
घनश्याम वशिष्ठ
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