मेरा अस्तित्व ...... ....
प्रात : की तीक्ष्ण किरणों से
तप तप कर
गर्मा रहा है
मेरा अस्तित्व
दोपहर की कड़कती धुप में
दोपहर की कड़कती धुप में
जल जल कर
चीख रहा है
मेरा अस्तित्व
गोधूलि की बेला में
शीतलता पा
चटक रहा है
मेरा अस्तित्व
दिवसावसान के अंतिम मोड़ पर
मुड़कर
धुंधला रहा है
मेरा अस्तित्व
रात की सूनी अंधेरी गलियों में
दुबक दुबक कर
मर रहा है
मेरा अस्तित्व
घनश्याम वशिष्ठ
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