Sunday 24 April 2011

मशीनी हो गया जीवन सुबह से शाम चलता है 
न तो रस का, न भावों का, हृदय में फूल खिलता है 
यहाँ तो प्यार को भी वक़्त की हमसे शिकायत है
निभाने को तुम्हें नफरत कहाँ से वक़्त मिलता है 

घनश्याम वशिष्ठ 

1 comment:

  1. Dear sir

    i read your poems. and i really impressed .

    vivek tomar

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