Sunday 24 April 2011

ख़ास आदमी ......आम आदमी .......

ख़ास आदमी ......आम आदमी ...

ख़ास आदमी ....
कदम बाहर निकालो  राह से जुड़कर तो तुम देखो  
खुला अम्बर तुम्हारा है ज़रा  उड़कर तो तुम देखो 



आम आदमी ....

बंद पिंजरे के पंछी को संकूँ पिंजरे में मिलता है 
खुले अम्बर में उड़ने के अलग अपने ही खतरे है 

-घनश्याम वशिष्ठ ....

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