kavighanshyam
Tuesday 5 July 2011
मधुशाला की मधुशाला
मधुशाला की मधुशाला
देख रहा हूँ भरा लबालब
तेरे नयनों का प्याला
साकी किन्तु कठोर छलकने
-भी नहीं देता रे हाला
कुछ बूंदें यदि गिरी कपोलों
-पर, क्या घट, घट जाएगा
खूब बहा ले पगले तेरा
हृदय स्वंय है मधुशाला
घनश्याम वशिष्ठ
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