kavighanshyam
Monday 27 June 2011
जाने किधर गई..........
जाने किधर
गई..........
अनजान सी अबोध सी, आँखें नईं - नईं
फिर रहीं थी खोज में, प्रिय की कहीं कहीं
हर ओर घूम रुक गई, हम पर जो देर तक
वो प्रीत के नस्तर चुभो जानें किधर गईं
घनश्याम वशिष्ठ
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