Friday, 24 June 2011

मेरे पर कतर गई..........

मेरे पर कतर गई..........
भटकाव में शब् आई, जानें कब सहर गई 
देखी जो एक शमा जली, नियति  ठहर गई 
आवारा पंछियों सा कैसे उड़ सकूंगा मैं 
वो खंजरे उल्फत से मेरे पर कतर गई
घनश्याम वशिष्ठ  

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