kavighanshyam
Saturday 25 June 2011
ज़ुबान सिल गई ..........
ज़ुबान सिल गई ..........
मुड़कर जो देखा आपने, बांछें सी खिल गई
मन को लगा कि मन की अब, मुराद मिल गई
अफ़सोस रहा यही, नहीं इज़हार कर सके
लब फडफडाये थे, मगर जुबां सिल गई
घनश्याम वशिष्ठ
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment