kavighanshyam
Sunday 5 June 2011
मधुशाला की मधुशाला
मधुशाला की मधुशाला
जब तक बूँद मात्र भी मेरे
नहीं हृदय में थी हाला
शब्दों का गढ़ता रहता था
प्याला -मैं साकी बाला
एक बूँद से हिय के अन्दर
अनुभूति अंकुर फूटा
शब्द खो गए, छंद सो गए
जाग उठी बस मधुशाला
घनश्याम वशिष्ठ
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