kavighanshyam
Friday 30 September 2011
यह है मेरे इश्क की इन्तिहाँ
चिता की राख भी उड़कर
पहुँचती है खिड़की पर तेरी
हवाओं से लड़कर
घनश्याम वशिष्ठ
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