kavighanshyam
Monday 5 September 2011
कभी नज़रें मिलाती हो ,कभी पलकें झुकाती हो
कभी गर्दन झटक रुख पर,गिरी जुल्फें हटाती हो
मुझे मालूम है दिल में तुम्हारे हो रहा कुछ -कुछ
अदाओं से जताती हो , निगाहों से छुपाती हो
घनश्याम वशिष्ठ
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