कुम्भ के लापता शिविरों में ,
प्रतीक्षारत हताश आँखें ,
करतीं हैं सवाल ...
क्या शाप थे हम .
वो मुक्त हो गए ..
क्या पाप थे हम .
घनश्याम वशिष्ठ
प्रतीक्षारत हताश आँखें ,
करतीं हैं सवाल ...
क्या शाप थे हम .
वो मुक्त हो गए ..
क्या पाप थे हम .
घनश्याम वशिष्ठ
No comments:
Post a Comment