Tuesday, 28 July 2015

              सात
सोच चले जा मिथ्या की जय
बोल सत्य का मुँह काला
आचरणों में ढोंग ओढ़कर
बन कोमल साकी बाला
झूठा नेह दिखाकर भर ले
प्याला अपना जनमत से
व्यवसायी बन कुटिल न तुझको
दूर लगेगी मधुशाला
घनश्याम वशिष्ठ 

Saturday, 25 July 2015

                छह
प्याले भर की लिए पिपासा
चला नेक पीने वाला
सच्चाई के पथ से कैसे
पहुंचेगा भोला भाला
मात्र झूठ की राह पकड़ कर
आँख मूंदकर चलता जा
 प्याले भर की बात कहाँ तू
पा जाएगा मधुशाला
घनश्याम वशिष्ठ 

Friday, 24 July 2015

              पाँच
जन जन के सपनों सी सुमधुर
सुखकर जीवन की हाला
नेता साकी बनकर लाया
भरकर वादों का प्याला
आज तलक जो हुए न पूरे
आगे क्या पूरे होंगे
जनता मूरख  पीने वाली
जूठे वादे मधुशाला
घनश्याम वशिष्ठ 

Thursday, 23 July 2015

           चार
सत्ता तो मदमय हाला है
कितनों का प्यासा प्याला
अपने प्याले में हाला की
सोचे हर पीने वाला
साम दाम भय दंड भेद से
जैसे भी हो मिल जाये
सत्ता के ठेकों की हाला
अधिकारों की मधुशाला
घनश्याम वशिष्ठ 

Wednesday, 22 July 2015

              तीन 
आँख मूंदकर लाज बेचकर
लेकर आया हूँ हाला
फर्क नहीँ पड़ता मुझको कि 
चिलम भरूँ या कि प्याला 
हुक्म हुजुरी  कर कर के निज 
अहम कभी का बेच चुका 
आज हृदय के भाव बेचकर 
करूँ समर्पण मधुशाला 
घनश्याम वशिष्ठ 

Tuesday, 21 July 2015

             दो
मॄदु भावों के अंगूरो की
नहीँ.स्वार्थों की हाला
प्रियतम के छूने से पहले
सत्ता छुयेगी प्याला
पहला भोग शक्तिवानो का
फ़िर प्रियतम की सोचूँगा
प्रथम करे सत्ता का स्वागत
उदघाटन में मधुशाला 
आदरणीय बच्चन जी को सादर समर्पित    
             एक 
प्रेरित होकर मधुशाला से 
उठा कल्पना का प्याला 
भाव तूलिका की नोकों पे 
बैठा लिखने मधुशाला 
प्रथम  समर्पित  छंद शब्द सब 
तेरी ही मधुशाला को 
मादकता फिर बिखराऐगी 
मधुशाला की मधुशाला 
घनश्याम वशिष्ठ ".