Wednesday, 11 December 2013

दिल्ली विधानसभा की मौजूदा स्थिति पर  …। 
 या तो छत्तीस का आँकड़ा पा लो ,
या छत्तीस का आँकड़ा निभा  लो  . 
घनश्याम वशिष्ठ

Tuesday, 10 December 2013

कान पका  दिए थे उन्होंने   गाल बजा बजा ,
बजा गाल पर उन्हीं के   , अब आया मज़ा  .
घनश्याम वशिष्ठ



Sunday, 8 December 2013

जड़ें कितनी  भी  गहरी रही हों मगर ,
ज़मीं ने पकड़ छोड़ी गिर गया शज़र 

घनश्याम वशिष्ठ

Saturday, 16 November 2013

माना उनकी फितरत में फ़रेब है  , 
पर , विश्वास करना हमारा ऐब है   . 
घनश्याम वशिष्ठ

Thursday, 14 November 2013

मन के कोढ़ को ढ़क कर ,
वो आए, इत्र छिड़क कर  .
घनश्याम वशिष्ठ

Monday, 11 November 2013

नफरत की  जमाखोरी की शिकार,क्या हुई आग।
मेरे घर, ना चूल्हा जला   ना चिराग 
घनश्याम वशिष्ठ

Thursday, 7 November 2013

सोच रहा है आहत अमन ,
कब  होगा कलिहारी आग का शमन  . 
घनश्याम वशिष्ठ

Wednesday, 30 October 2013

करे ठगा महसूस प्रशासन ,मिला न सोना  . 
कितना महँगा पड़ा ,एक  बाबा  का  सोना  . 
घनश्याम वशिष्ठ 

Tuesday, 29 October 2013

मौसम बदलते ही ,पिंघली बर्फ, फिर जम जायेगी ,
अफ़सोस, सकारात्मक सक्रियता फिर थम जायेगी . 
घनश्याम वशिष्ठ

Sunday, 27 October 2013

हमारे संयम की छाँव  तले  चल रहा है -
सुरक्षित,उनका दुस्साहस पल रहा है। 

घनश्याम वशिष्ठ 

Monday, 21 October 2013

दियासलाई के निशान, हाथों पर तो मिलने  नहीं । 
फिर कातिल कौन  …आग ही सही  …
घनश्याम वशिष्ठ

Friday, 20 September 2013

उनकी नज़रों में इश्क कोई ज़ुल्म नहीं था ,
पंचायती  क़ानून  उन्हें  मालूम  नहीं  था  . 
घनश्याम वशिष्ठ 

Thursday, 19 September 2013

हवाओं से लड़ता, आखिर कब तक ,
टूट कर झुक ही गया, बूढा बरगद  . 
घनश्याम वशिष्ठ 

Wednesday, 18 September 2013

रिश्तों की दरारें भर तो ली  हैं मगर ,
कब तड़क जायेंगी   क्या खबर  . 
घनश्याम वशिष्ठ 

Saturday, 14 September 2013

कैसे ढहा दूं उसका घर  … ,
हमारे  तो घर की दीवारें भी ,
खड़ी हैं एक दुसरे के सहारे ही
घनश्याम वशिष्ठ 
भला तब हो ,जब अंजाम का डर ,
दिखाए कुछ सकारात्मक असर  .  
घनश्याम  वशिष्ठ

Saturday, 7 September 2013

पथ भटके जिनका रहा ,राह दिखाना काम। 
ऐसे  में   राही रखें , किससे आशा  … राम।
घनश्याम वशिष्ठ

Monday, 2 September 2013

 भय है, पका विश्वास खुरचवा न दे ,शंका कहीं ,
 देखने को - नंगे चेहरे पर  कालिख तो नहीं  
घनश्याम वशिष्ठ

Tuesday, 27 August 2013

कम से कम, खाज तो मत बनो कोढ़ पर ,
बेहतर है ,पड़े  रहो  कफ़न  ओढ़कर . 

घनश्याम वशिष्ठ


Thursday, 22 August 2013

फिर  वही प्रचार ,फिर वही नारे ,
कोरा झूठ ,ना रे बाबा, ना रे ,ना रे  ….
घनश्याम वशिष्ठ

Saturday, 17 August 2013

सोचकर चल दिए बाँहों के पालने तो ,
फुटपाथ है ना सँभालने को।

घनश्याम वशिष्ठ

Friday, 16 August 2013

ज़िंदा रहे जिंदादिली ,होती अमर यह ज़िन्दगी ,
संघर्ष में ज़िंदा जले ,शोलों  से आजादी  मिली . 
 
 देकर गए स्वामित्व वो ,अधिकार औ दायित्व वो , 
लहराए चिर आकाश में ,ध्वज हर्ष में उल्लास में ,
थाती की रक्षा के लिए  , तत्पर रहें  रौशन दिए ,
होगी शहीदों  के लिए ,सच्ची यही श्रधान्जली। 

घनश्याम वशिष्ठ
 

Monday, 12 August 2013

रखकर निकला था ,सरकारी आंकड़े जेब में ,
पेट नहीं भर पाया , फंस गया फरेब में। 
घनश्याम वशिष्ठ

Sunday, 11 August 2013

 हम भी सक्षम हैं सीमाएं, बल से लांघ दिखाएँ  हम ,
दम रखते हैं जब चाहें ,तेरा अस्तित्व मिटायें हम ,
ऐसा  ना हो तुझे कुचलने तेरे घर घुस आयें हम ,
स्वयं चेत जा उससे पहले, खल बल से चेतायें हम ,
हमने मान रखा है अब तक समझोतों की आन का ,
गम  खाया है कारगील में  ,वीरों के बलिदान का ,
संयम का ना   इम्तिहान ले दुश्मन, हिन्दुस्तान का ,
वरना   हम भूगोल  गोल  कर देंगे पाकिस्तान का . 

घनश्याम वशिष्ठ


Thursday, 8 August 2013

इसके कुटिल इरादे ,इसकी नीयत है नापाक ,
यही सत्य  है बिना युद्ध के, सुधरेगा ना पाक  
घनश्याम वशिष्ठ .

Wednesday, 7 August 2013

बाबागिरी  ………. 
किसकी मजाल , बाबा के आदेश को नाटे ,
बाबा सबको डांटे ,बाबा को कौन डांटे  .

घनश्याम वशिष्ठ

Tuesday, 6 August 2013

सियासत से हमनें सीख -एक ली ,
जहां देखी आग ,रोटियाँ  सेक ली। 

घनश्याम वशिष्ठ

Monday, 5 August 2013

कैसे   दिखेंगे चेहरे के दाग   ……।  

आईना अंधा है 
सरोवर गंदा है। 

 घनश्याम वशिष्ठ

Thursday, 1 August 2013

कल  ही हमारे संवेदनहीन नगर में ,
प्यार का दरिया जा गिरा , घृणा के गटर में। 
घनश्याम बशिष्ठ

Wednesday, 31 July 2013

गरीबी तो ज़मीन पर थी ,
उन्होंने ज़मीन के  नीचे रेखा  खींच दी। 
घनश्याम वशिष्ठ

Tuesday, 30 July 2013

बात  समझ से परे है ,
नदियाँ सूखी हैं ,नाले लबालब भरे हैं 
घनश्याम वशिष्ठ

Sunday, 21 July 2013

सचमुच भूख का शहर ,
नहीं देखता, जूठन है या ज़हर ,
घनश्याम वशिष्ठ

Tuesday, 16 July 2013

चुनावी दस्तक ...........
कैसा उत्सव है ,पंडाल सज रहे हैं .
खाली बर्तन बज रहे हैं .
घनश्याम वशिष्ठ

Saturday, 29 June 2013

कुदरती जंगल ,कंक्रीट का जंगल हुआ जा रहा है ,
जंगल में मंगल ,या फिर अमंगल हुआ जा रहा है .
घनश्याम वशिष्ठ

Thursday, 27 June 2013

बहुत मजबूत है हमारी आस्था की रीढ़ .
साक्षी है ,अमरनाथ यात्रियों की भीड़ .

घनश्याम वशिष्ठ

Wednesday, 19 June 2013

कहाँ ढूंढे तुम्हें, पता नहीं मिलता है .
सबसे जबाब  हमें ,पता नहीं ..मिलता है
घनश्याम वशिष्ठ

Monday, 17 June 2013

संग ईंट- रोड़े का छूटा ,
भानुमती का  कुनबा टूटा .
घनश्याम वशिष्ठ

Sunday, 16 June 2013

डांटा कभी , कभी पुचकारा 
पापा अदभुत प्यार  तुम्हारा .
पूज्य पिता को पितृ दिवस पर सादर  श्रद्धांजली
घनश्याम वशिष्ठ  ,
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Wednesday, 12 June 2013

कल तलक वो  हमारी छांव में पले .
आज हम खुद हैं ,उनकी छाँव तले .
घनश्याम  वशिष्ठ 

Tuesday, 11 June 2013

सहारा लिया था अंगुली थमाकर ,
वो ही गए फिर अंगूठा दिखाकर .
घनश्याम वशिष्ठ

Monday, 10 June 2013

किनारे  कर दिया आहिस्ते -आहिस्ते ,
ऐसे ही  तो होते हैं .. स्वार्थ के रिश्ते .
घनश्याम वशिष्ठ

Thursday, 6 June 2013

मित्रों ,सर्वभाषा सांस्कृतिक  समन्वय समिति के सदस्यों के साथ बदरीनाथ धाम जाने का सुअवसर प्राप्त हुआ ,पर्वत राज हिमालय का विराट रूप देख कवि  मन कह उठा .....

भाल चूमने को उत्सुक नभ ,
चरण पखारे जल की धारा , 
आज हिमालय परिचय पाया , 
वैभव ,विपुल , विराट तुम्हारा .
घनश्याम वशिष्ठ

Tuesday, 4 June 2013

जुबां का झूठ ,आँखों में झलक रहा है ,
ये प्यार नहीं , तो क्या छलक रहा है .
घनश्याम वशिष्ठ

Monday, 27 May 2013

हमने तो उन्हें महज़ ,ख़ूबसूरत चीज  कहा , 
उनका मिजाज़ ,जानें क्यूँ बदतमीज़ हुआ  .
घनश्याम वशिष्ठ

Wednesday, 22 May 2013

हमने तो सहेज कर रख लिए हैं ,
वो आंसू ..जो तुमने दिए हैं .
घनश्याम वशिष्ठ

Monday, 20 May 2013

आँखें भी क्या खूब करामाती हैं ,
बिना छुए ही छुवन का अहसास  दे जाती हैं .
घनश्याम वशिष्ठ

Friday, 10 May 2013

नज़रें चुराते हो क्यूँ भला ,
कोई अपनी ही चीज़ चुराता है क्या .
घनश्याम वशिष्ठ 

Wednesday, 8 May 2013



















ये   मेरा  वजूद जो है,
माँ ..तेरा अंश ही तो है 

घनश्याम वशिष्ठ

Tuesday, 7 May 2013

सत्ता जिनके हाथ उन्हें हक ,दादागिरी दिखानें का ,
लाठी जिनके हाथ उन्हें हक, भैंस हांक ले जाने का .

घनश्याम वशिष्ठ 

Sunday, 5 May 2013

ऐसे भूलने लगते हैं  लोग .......
अश्क बहाकर बैठे हैं ,हम घाव भुलाकर बैठे हैं ,
ज़रा सकूं ले लेने दो , अब ही घर आकर बैठे हैं .
घनश्याम वशिष्ठ 

Saturday, 4 May 2013

मौत से अलग  कुछ नहीं मिलना ,लैला मजनू बनकर ,
बेहतर है , तू अपने घर सुखी ..मैं अपने घर .
घनश्याम वशिष्ठ 

Friday, 3 May 2013

सरबजीत तो हो गए मर कर अमर ,
पर थू -थू है  ,पाकिस्तान  तुझ पर  .
घनश्याम वशिष्ठ  

Wednesday, 1 May 2013

आम राय  ....
दिल में तो बहुत सारी हैं ,
घर में एक ही भारी है .
घनश्याम वशिष्ठ
आम राय  ....
दिल में तो बहुत सारी हैं ,
घर में एक ही भारी है .
घनश्याम वशिष्ठ 

Friday, 26 April 2013

अजीब लोग हैं , परेशान हैं बेगम से .
गम से तो ठीक ,पर  ..बे- गम से ......

घनश्याम वशिष्ठ 

Thursday, 25 April 2013

तुमनें भला क्यूँ सोचा ,जायेंगे यूँ  ही मर हम 
आये हो जो लगानें ,ज़ख्में जिगर  पे मरहम 

घनश्याम वशिष्ठ 

Friday, 12 April 2013

हर आहट पर साँसें लेने लगता है ,
इंतज़ार भी भला कहीं  मरता है  .
घनश्याम वशिष्ठ 

Thursday, 11 April 2013

कपडा जैसे ही कफ़न हुआ ,
बेचारा वैसे ही दफ़न हुआ  .
घनश्याम वशिष्ठ 

Wednesday, 10 April 2013

सचमुच तुम में कुछ बात है ,
पर क्या ...अज्ञात है  .
घनश्याम वशिष्ठ 

Tuesday, 9 April 2013

संवेदनशून्य युग में, सत्याग्रह ... अव्यवहारिक बातें हैं .
सच तो यही  है .. पत्थर पिंघलते बहीं ,तोड़े जाते हैं .
घनश्याम वशिष्ठ 

Monday, 8 April 2013

सकल पदार्थ  हैं  जग  माहीं ,
सरल सुलभ सत्ता सुत  ताहीं  .
घनश्याम वशिष्ठ 

Friday, 5 April 2013

माना  कि  राहें  सरल  नहीं  हैं ,
पर ..रुक जाना भी हल नहीं  है .
घनश्याम वशिष्ठ 

Wednesday, 3 April 2013

capsool

सुंदर सौष्ठव तन, किसी काबिल नहीं ,
मन  मजबूत नहीं ,कुछ हांसिल नहीं .
घनश्याम वशिष्ठ 

Monday, 1 April 2013

घेरे बैठे हैं ...काग सयाने ,
किसकी मानें ,किसकी ना मानें .
घनश्याम वशिष्ठ 

Sunday, 31 March 2013

मैं मुसाफिर हूँ .. यह सच है ,
फिर भी आशियाने का लालच है  .

घनश्याम वशिष्ठ 

Thursday, 28 March 2013

मांग रहीं हैं सुरक्षा की छईया ,
मेरे आँगन की गौरियां  .
घनश्याम वशिष्ठ 

Tuesday, 26 March 2013

जीवन के रंगों पर ,यूँ पानी न उडेलें .
पानी बचाएं ,आओ सूखी होली खेलें 

घनश्याम वशिष्ठ 

Saturday, 23 March 2013

अब तो काग भी नहीं आते मुंडेर पर .
उजड गया मेरे इंतज़ार का शहर  .

घनश्याम वशिष्ठ 

Friday, 22 March 2013

बीस बरस बाद जब .....
पीढितों के घाव भर गए ,
बुढियाते अपराधी सुधर गए  .
न्याय व्यवस्था तब .....
मरहम लगा रही है ,
कारागृहों में धकिया रही है .

घनश्याम वशिष्ठ

Thursday, 21 March 2013

वेनी की बातों पर यूँ ना अडो .. मुलायम ,
बच जाए सरकार , जरा सा पड़ो मुलायम  .

घनश्याम वशिष्ठ 

Tuesday, 12 March 2013

क्या कहा उन्होंने , हमसे रूठे हैं ,
अरे ,वो बहुत झूठे हैं .
घनश्याम वशिष्ठ 

Thursday, 7 March 2013

कभी माँ ,कभी बहन ,कभी पत्नी ,कभी बेटी -बहु  .
जिस रूप में भी रही , पालनहार रही तू  .

घनश्याम वशिष्ठ 

Tuesday, 5 March 2013

कुम्भ के लापता शिविरों में ,
प्रतीक्षारत हताश  आँखें ,
करतीं हैं सवाल  ...
क्या शाप थे हम .
वो मुक्त हो गए  ..
क्या पाप थे हम  .

घनश्याम वशिष्ठ 

Monday, 4 March 2013

बजट पर आपकी राय  ...
गरीब आदमी की ओर पत्रकार नें प्रश्न उछाला  .
उत्तर आया  ....
भूखे भजन न होहिं गोपाला .

घनश्याम वशिष्ठ 

Sunday, 3 March 2013

ऐसी हो गई है पुलिस की छवि ,
आम आदमीं डरता है, अपराधी नहीं .

घनश्याम वशिष्ठ 

Friday, 1 March 2013

जहां  हवाओं में भी आतंक का डर है 
क्या  यह  सांस लेने लायक शहर है 

घनश्याम वशिष्ठ 

Thursday, 28 February 2013

फर्क नहीं पड़ता, सर पर छत, हो ना हो
खुले अम्बर तले, पर दहशत तो ना हो 

घनश्याम वशिष्ठ 

Friday, 25 January 2013

हमें गर्व भारत भूमि पर जिसनें वीर सुभाष दिया

बन तूफानी लहर चला था, जो हुगली की धारों से ,
खेल खेल में खेल गया जो ,आग भरे अंगारों से 
नहीं रुका, वह नहीं झुका, गोरों के अत्याचारों से ,
पांचजन्य उद्घोष किया, जिसने फौलादी नारों से 
जयहिंद जयहिंद गूँज उठा मरुथल से और कछारों से 
देवदार से, केसर से ,हिम घाटी से ,कचनारों से 
ताल तलईया कूपों से, सरिता के शांत किनारों से 
खेतों से, मैदानों से गाँवों से, हर गलियारों से 
आग लिए सीनों में दीपक ,ढूंढ लिए अंधियारों से 
और उन्हें लड़ना सिखलाया बारूदी हथियारों से 

जगा जगा सोते सिंहों को ,ताक़त का अहसास दिया 
हमें गर्व भारत भूमि पर जिसनें वीर सुभाष दिया 

घनश्याम वशिष्ठ 

Thursday, 24 January 2013

हमें गर्व भारत भूमि पर जिसने वीर सुभाष दिया ....

राज और रजवाड़ों का ,गोरों  से मर्दन मान हुआ 
पराधीनता में जकड़ा और बेबस हिन्दुस्तान हुआ 
जिसने भी संघर्ष किया उन सब का कत्ले आम हुआ 
क्रान्तिकाल सत्तावन  का था ग़दर हुआ नाकाम हुआ 
किन्तु उदित हुआ जो सूरज ऐसे ना अवसान  हुआ 
माँ की आँखों के तारों का समर बीच बलिदान हुआ 
गोद रिक्त ना हुई धरा की सीना लहूलुहान हुआ 
अंगेजी  सत्ता के ताबूत में यह कील सामान हुआ 
नेताजी का उदय देश को कारज एक महान हुआ 
आज़ादी की मंजिल पर यह एक और सौपान हुआ

आज़ादी आँखों को आशाओं का आकाश दिया 
हमें गर्व भारत भूमि पर जिसने वीर सुभाष दिया 

घनश्याम वशिष्ठ 

Wednesday, 23 January 2013

आज़ादी नहीं मिलती यारो ,विनय विनीत विमर्शों से 
आज़ादी नहीं मिलती है , करतल के स्नेह स्पर्शों से 
आज़ादी हाँसिल होती है, ताक़त से संघर्षो से ,
आज़ादी को तरस रहे थे भारत वासी वर्षों से 
खून के बदले आज़ादी दिलवानें का विशवास दिया 
हमें गर्व भारत भूमि पर, जिसने वीर सुभाष दिया 

घनश्याम वशिष्ठ 

Monday, 21 January 2013

अफ़सोस , अब भी शांत सरहद है 
सोचे सैनिक का कटा  सर ,हद है 

घनश्याम वशिष्ठ 

Friday, 18 January 2013

ऐसा क्या है हमारे डी .एन .ए .में ,
हर घाव जल्दी भर जाता है 

घनश्याम वशिष्ठ 

Monday, 14 January 2013

जो लोग डरते हैं पड़े, चेहरे पे दाग से 
वो लोग खेलेंगे भला क्या खाक आग से 

घनश्याम वशिष्ठ