Friday, 30 September 2011


यह है मेरे इश्क की इन्तिहाँ 
चिता की राख भी उड़कर 
पहुँचती है खिड़की पर तेरी 
हवाओं से लड़कर 

घनश्याम वशिष्ठ 

Thursday, 29 September 2011

स्वप्न  सिंहासन बैठ धरा के 
कंटक कहाँ सुहाते है 
आज स्मृति में वही पुराने 
दृश्य उभर कर आते है 

तने हुए तरु के तन पर थे 
हरित पात उन्मादित से 
गिरे धरा पर इधर उधर हो 
पतझड़ में विस्थापित से 
दिशा हीन अस्तित्व हीन 
पीछे परिचय रह जाते हैं 

चिर शिशिर शाप भोगे रजनी 
श्रृंगार टूट गिरते तारक 
चपला मचली सौभाग्य चिन्ह 
कुमकुम की धधक उठी पावक 
पलक झपकते प्रतिबिम्ब क्यूँ 
पूनम में धुंधलाते है 

आज स्मृति में वही पुराने 
दृश्य उभर कर आते हैं 

घनश्याम वशिष्ठ  
आज भी तुमसे लगाव है 
दिल में. बस यही घाव है 

घनश्याम वशिष्ठ 

Wednesday, 28 September 2011

इतना ही फरक पडा प्रेमिका से पत्नि बनकर 
घर  में  आ गई   हो , दिल  से  निकलकर

घनश्याम वशिष्ठ
 


Tuesday, 27 September 2011

जीवन में न सही अहसास में ज़िंदा हैं 
नाकाम आशिकों के इतिहास में ज़िंदा हैं 

घनश्याम वशिष्ठ 

Monday, 26 September 2011

ख़्वाबों ने जादू किया क्या न जाने 
लगे हम हकीक़त से नज़रें चुराने 

घनश्याम वशिष्ठ



Sunday, 25 September 2011

हार्ट सर्जरी से घबराता हूँ ,क्या मौत का खौफ है
नहीं,कई राज़ खुल जायेंगे इस बात का खौफ है 

घनश्याम वशिष्ठ

Saturday, 24 September 2011

 बत्तीस रुपये खर्च करके , पेट तो नहीं भर पाउँगा
पर इतना  निश्चित है -अब गरीब नहीं कहलाउंगा 

घनश्याम वशिष्ठ
 

 
दिन के   ३२ रूपये खर्च करने वाला व्यक्ति गरीब नहीं है ....
कहकर सरकार नें चुनावी वायदा निभा दिया है 
सरकारी  आंकड़ो में  गरीबी को  हटा   दिया है 

घनश्याम वशिष्ठ





Friday, 23 September 2011

बढती उम्र ने  समानार्थक शब्दों के अर्थ बदल डाले हैं 
पहले दिल का रोग पाला था,  अब हृदय रोग पाले हैं 

घनश्याम वशिष्ठ 
आज फिर उलटी गंगा बही है 
आग, पेट में  लगी है, चूल्हे में नहीं है 

घनश्याम वशिष्ठ

Thursday, 22 September 2011

तू धरा  आकाश मैं ,दिल में अभी तक है गिला 
उम्र गुजरी अंत तक, हमको क्षितिज ही ना मिला 

घनश्याम वशिष्ठ 
छप्पन भोग कहाँ , धर्म तो रुखी रोटी निभाती है  
क्योंकि  यह किसी ज़रूरतमंद के पेट में जाती है 

घनश्याम वशिष्ठ 

Wednesday, 21 September 2011

दुकानदार पर उस वक़्त क्या गुजरी होगी, बोलिए !
जब तौलिये खरीदने आई मोटी औरत ने कहा, तोलिए.......

घनश्याम वशिष्ठ 
कभी आग से आग बुझती देखी है कहीं !
देखो ,महंगाई की आग से गरीब के चूल्हे की आग बुझ गयी 
घनश्याम वशिष्ठ

Tuesday, 20 September 2011

जिक्र ए हकीक़त कहाँ कहाँ नहीं किया है 
हमनें तुम्हें कब का भुला दिया है


घनश्याम वशिष्ठ
 

Monday, 19 September 2011

ज़रा तुम दिख पड़ो दिल में अजब सागर उफनता है 
न  दिखती  हो बड़ा  मायूस  होकर  दिल सहमता है
इशारा  दे  रहे  ज़ज्बात  यूँ   तो  प्यार  का   लेकिन
न तो इनकार  न इकरार  कुछ  करते  ही  बनता है 

घनश्याम वशिष्ठ

Sunday, 18 September 2011

रूमानी कल्पनाओं  के बादल न छ्टे होते 
काश,चाँद से परदे न हटे होते 

घनश्याम वशिष्ठ 

Saturday, 17 September 2011

बुत  हो गयी हो  तुम  तो हया  से 
बने कोई काफिर तुम्हारी बला से 

घनश्याम वशिष्ठ 

Thursday, 15 September 2011

कुछ तो काम आया  दिल पे चोट खाना 
दिल मजबूत है कम से कम ये तो जाना 

घनश्याम वशिष्ठ

Wednesday, 14 September 2011

मुद्दत  लगी  पास आनें में 
लम्हा न लगा दूर जाने में

घनश्याम वशिष्ठ

हिंदी दिवस पर  मात्र खाना पूर्ती  करके  नहीं  रह जाना है  
संकल्प उठाना है ,हिंदी को काम काज की भाषा बनाना है 

घनश्याम वशिष्ठ 

Tuesday, 13 September 2011

दिल धड़कनें  क्या  लगा 
कमबख्त उनसे जा लगा   

घनश्याम वशिष्ठ   

Monday, 12 September 2011

क्यूँ मुझे मुंह खोलने पर मजबूर करती हो 
ऐसी भी पारी ए हुस्न नहीं जो गरूर करती हो

घनश्याम वशिष्ठ 

Friday, 9 September 2011

अजीब है कुछ,  हसीनों की फितरत बड़ी 
हमनें जुल्फों को घटा कहा ,वो बरस पड़ीं

घनश्याम वशिष्ठ
बार बार आतंकवादी हमले सहना 
और उन्हें  कायरता पूर्ण कहना 
बस यही रह गया हमारा पौरुष कि 
आतंक के साए में डरे डरे रहना 

घनश्याम वशिष्ठ 

Thursday, 8 September 2011

आतंकियों को पहले ही टपका देते
तो  आज, ये आंसू न टपकते ..बेटे 
घनश्याम वशिष्ठ 


कीचड़ में कमल ...................................................
मुझे लगता है.. कीचड़ की तरफ जा रहा है
लोग कहते है.. साहबजादा गुल खिला रहा है


घनश्याम वशिष्ठ 



























Wednesday, 7 September 2011

दिल्ली पर उग्रवादी हमला .........

उग्रवादियों को फांसी दिलाने में, दिखाते यदि द्रढ़ता 
फिर कम से कम, यह दिन तो न देखना पड़ता 

घनश्याम वशिष्ठ

Tuesday, 6 September 2011

अंगूर खट्टे हैं .........
ज़मीन के दाम सुनकर हमारे पैरों तले से ज़मीन खिसक गयी 
अब क्या कहूं  ...ज़मीन खोखली है 

घनश्याम वशिष्ठ

Monday, 5 September 2011

कभी नज़रें मिलाती हो ,कभी पलकें झुकाती हो 
कभी गर्दन झटक रुख पर,गिरी जुल्फें हटाती हो 
मुझे मालूम है दिल में तुम्हारे हो रहा कुछ -कुछ
अदाओं  से  जताती हो , निगाहों से  छुपाती  हो
घनश्याम वशिष्ठ

Saturday, 3 September 2011

 शिक्षक दिवस पर एक शिक्षक की भावनाएं विद्यार्थी के लिए ..........
तुम देश का, समाज का.
भविष्य हो , आधार हो
हम स्वप्न की बुनियाद हैं
तुम रूप हो, आकार हो
सभी शिक्षकों को सदर नमन
घनश्याम वशिष्ठ
 






































   
भ्रष्टाचार या सरकार का विरोध करने वालों के लिए .......
रहना ज़रा, संभल कर इस बस्ती में 
समझो कि हो, सियारों की सरपरस्ती में

घनश्याम वशिष्ठ 

Friday, 2 September 2011


























































































































































































































































































यूँ ही नहीं है किसी का हाथ थाम लेना 
इसका मतलब है ...
एक और जिम्मेदारी का काम लेना

घनश्याम वशिष्ठ